Header Ads Widget

सर्वोच्च न्यायालय

 सर्वोच्च न्यायालय 



सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित प्रावधान संविधान के भाग 5 के  अनुच्छेद 124 से 147 तक वर्णित है इन अनुच्छेदों में सर्वोच्च न्यायालय के गठन , स्वतंत्रता, न्याय क्षेत्र, शक्तियां वा प्रक्रिया आदि का उल्लेख किया गया है।
यह 1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा स्थापित संघीय न्यायालय का ही प्रतिरूप है यह संघीय न्यायालय होने के साथ-साथ अंतिम अपीलीय न्यायालय भी है।
उच्चतम न्यायालय आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति को सलाह देता है (अनुच्छेद 143 )
• सर्वोच्च न्यायालय का गठन 
भारत के मूल संविधान में अनुच्छेद 124 (1) के अनुसार भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा एवं जिसके मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त 7 अन्य न्यायाधीश होंगे और जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती तब तक संख्या यही रहेगी।
Note: संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकती है  किंतु 7 से कम नहीं कर सकती हैं
मुख्य न्यायाधीश को लेकर मूल संविधान में न्यायाधीशों की संख्या 8 थी जिसे संसद द्वारा समय-समय पर पढ़ाया गया। आसमान में सर्वोच्च न्यायालय में 34 न्यायाधीशों (  मुख्य न्यायाधीश सहित) का प्रावधान है।
• न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 124 (2) के तहत राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श करके अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति करता है।
मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेना आवश्यक है।
अनुच्छेद 124 (2) मैं वर्णित परामर्श का तात्पर्य सिर्फ एक व्यक्ति के परामर्श से नहीं बल्कि अनेक न्यायाधीशों से परामर्श से है।
मुख्य न्यायमूर्ति को सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के मंडल के परामर्श करके ही राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेजनी चाहिए और इस मंडल में भावी मुख्य न्यायमूर्ति भी अनिवार्यत: शामिल होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के संदर्भ में लंबे समय से चले आ रहे योग्यता और वरिष्ठता के द्वंद के संदर्भ में वरिष्ठता को आधार बनाया गया अर्थात मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति वर्तमान में वरिष्ठता के आधार पर होती है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम व्यवस्था को अपनाया गया है जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा सुप्रीम कोर्ट के चार अन्य वरिष्ठतम  न्यायाधीश शामिल होते हैं इस व्यवस्था के विकल्प के तौर पर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग लाया गया था जिसको सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित कर दिया।
Note : • कॉलेजियम प्रणाली 
 कॉलेजियम में सदस्यों की संख्या 5 होती है। 
 
 पांच सदस्यों में से एक भारत के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य चार वरिष्ठतम न्यायाधीश होते हैं।
न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए इस मंडल की आम सहमति होना चाहिए। यदि कॉलेजियम के  दो  न्यायाधीश किसी न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध हैं तो राष्ट्रपति के समक्ष नियुक्ति की सलाह नहीं दी जाएगी। कॉलेजियम के निर्णय में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का निर्णय सदैव शामिल होना चाहिए।
•मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति
संविधान में मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है अनुच्छेद 124 (2) मैं दिया गया प्रावधान ही मुख्य न्यायमूर्ति पर भी लागू होता है।
मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति को लेकर प्रमुख सवाल यह है कि उसका चयन सिर्फ वरिष्ठता के आधार पर होना चाहिए या योग्यता को प्राथमिकता मिलनी चाहिए? 1958 में विधि आयोग ने अपनी 14वी रिपोर्ट में सिफारिश दी कि मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति सिर्फ वरिष्ठता के आधार पर नहीं की जानी चाहिए उसमें योग्यता को भी महत्व दिया जाना चाहिए किंतु 1973 तक सभी मुख्य न्याय मूर्तियों की नियुक्ति वरिष्ठता के नियम के आधार पर ही होती रही।
1973 और 1977 मैं दो बार वरिष्ठता के क्रम का उल्लंघन किया गया है 24 अप्रैल 1973 को सर्वोच्च न्यायालय की 13 न्यायाधीशों की पीठ ने 7 : 6 के बहुमत से केशवानंद भारती मामले का निर्णय सुनाया। मुख्य न्यायमूर्ति श्री एस एम सीकरी को उसी दिन सेवानिवृत्त होना था। उसके बाद वरिष्ठता के क्रम में तीन ऐसे न्यायाधीश थे जिन्होंने केसवानंद मामले में संविधान के मूल ढांचे की धारणा का समर्थन किया था जिससे सरकार उनसे नाराज थी यह तीन न्यायाधीश थे  श्री जे एम सेटल, श्री के एस हेगडे तथा श्री a.m. ग्रोवर । श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने कठोर कदम उठाते हुए इन तीनों न्यायाधीशों की वरिष्ठता को लांग कर श्री ए एन रे को मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त कर दिया जस्टिस ए एन रे 1973 से 1977 तक भारत के मुख्य न्यायमूर्ति रहे। 
1977 में जब जस्टिस ए एन रे सेवानिवृत्त हुए तो हंसराज खन्ना वरिष्ठ तम न्यायाधीश थे । किंतु श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने वरिष्ठता क्रम को लांग कर (क्योंकि बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में उनके द्वारा दिए गए विसम्मत  निर्णय से सरकार नाराज थी इसलिए जस्टिस हमीदुल्लाह बेग को मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त किया गया ।
1993 में ‘ न्यायाधीशों वाले दूसरे मामले’ का फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने  निर्धारित किया कि मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति वरिष्ठता क्रम के आधार पर ही की जाएगी उसके बाद वरिष्ठता क्रम की व्यवस्था निरंतर लागू है । जब तक की बड़ी पीठ इस निर्णय को पलट कर कोई वैकल्पिक व्यवस्था ना दे तब तक इसे नहीं बदला जा सकता। 




x

Post a Comment

0 Comments